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यूपी का रण : इस बार कौन भेदेगा हस्तिनापुर का चक्रव्यूह

  • लेखक की तस्वीर: Patrakar Online
    Patrakar Online
  • 28 जन॰ 2022
  • 2 मिनट पठन

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महाभारत काल में राजधानी रहा हस्तिनापुर सियासी रण की वजह से एक बार फिर सुर्खियों में है। चक्रव्यूह रचा जा चुका है। सभी प्रमुख दलों के योद्धा मैदान में आ चुके हैं। मतदाता भी धीरे-धीरे चुप्पी तोड़ने लगे हैं। कहा जाता है कि चुनाव में हस्तिनापुर की जनता जिस दल को जीत दिलाती है, उसी की सरकार लखनऊ में बनती है। शायद यही वजह है कि यहां सभी खेमों ने यहां ताकत झोंक दी है। मेरठ जिले की हस्तिनापुर सीट बिजनौर लोकसभा क्षेत्र में आती है। वर्ष 1957 में वजूद में आई यह सीट 1967 में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गई। भाजपा को इस सीट पर पहली बार 1994 में गोपाल काली ने जीत दिलाई, तो 2017 में दिनेश खटीक जीते। सीएम योगी आदित्यनाथ ने सितंबर 2020 में दिनेश खटीक को प्रदेश सरकार में राज्यमंत्री बनाया। खटीक के सामने यहां रालोद के गठबंधन में चुनाव लड़ रही सपा ने पूर्व विधायक योगेश वर्मा को प्रत्याशी बनाया है। वर्मा 2007 में बसपा के टिकट पर इसी सीट से विधायक बने थे। 2012 में टिकट कटा तो वह बगावत कर पीस पार्टी से मैदान में कूद पड़े। बहरहाल, उन्हें सपा के प्रभुदयाल बाल्मीकि से हार का सामना करना पड़ा था। वर्मा को बसपा ने यहां से 2017 में फिर उम्मीदवार बनाया लेकिन एक बार फिर उनके हिस्से हार ही आई। अलबत्ता, योगेश वर्मा की पत्नी सुनीता 2017 में ही मेरठ शहर से मेयर चुनी गईं। इस बार वर्मा सपा-रालोद के साझा उम्मीदवार हैं। कांग्रेस ने यहां से अभिनेत्री अर्चना गौतम को प्रत्याशी बनाया है। अर्चना स्थानीय हैं और उनका यह पहला चुनाव है। बसपा ने भी यहां नए चेहरे संजीव जाटव पर दांव लगाया है। इस सीट को पहली बार भाजपा की झोली में डालने वाले गोपाल काली ने खटीक के खिलाफ खुली बगावत कर रखी है। वह खटीक के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं।

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